सोचिए एक पल के लिए…
जब आप अपने घर की सारी लाइट्स बंद कर दें, मोबाइल को साइड में रख दें और बस एक छोटा सा दीया या मोमबत्ती जला कर बैठ जाएँ। चारों तरफ हल्का अंधेरा, दीवार पर परछाइयाँ और बाहर से झींगुरों की आवाज़… अब imagine कीजिए यही आपकी पूरी ज़िंदगी हो।
हाँ, यही था वो समय—जब गाँव में बिजली नहीं थी, लेकिन फिर भी चेहरे पर मुस्कान की कभी कमी नहीं महसूस हुई। आज जब हर हाथ में smartphone है, हर घर में inverter और हर कमरे में bulb — तब भी मन कहीं न कहीं उसी पुराने सादे समय को याद करता है।
शायद इसीलिए आज के time में यह topic ट्रेंड में है, क्योंकि लोग फिर से slow life, simple village life और real happiness को ढूँढने लगे हैं।
जब रात का मतलब होता था – बातें, कहानी और साथ

आजकल जैसे ही बिजली जाती है, हम परेशान हो जाते हैं — “नेट चला गया”, “AC बंद हो गया”, “फोन कैसे चार्ज होगा”।
लेकिन उस वक्त, जब गाँव में बिजली नहीं थी, तब रात शुरू ही होती थी असली मज़े के लिए।
लोग घर के बाहर खाट डालकर बैठ जाते थे। बच्चे इधर-उधर भागते, दीया जलता, कोई किस्सा सुनाता, कोई पुरानी लोककथा सुनाता। दादी-नानी की कहानियाँ आज भी कानों में गूंजती हैं – राजा, जंगल, चुड़ैल, देवता और गाँव के वीरों की कहानियाँ।
कोई bored नहीं होता था, क्योंकि entertainment स्क्रीन में नहीं बल्कि लोगों में था।
सच कहूँ तो, आज भी जब अपने गाँव जाता हूँ और अचानक light चली जाती है, तो दिल चाहता है – बस सब बाहर आ जाएँ और वही पुराने दिन वापस आ जाएँ।
पढ़ाई भी एक struggle थी – लेकिन जज़्बा गज़ब का था

उस समय ना table lamp था, ना LED bulb, ना पढ़ने का luxury environment।
फिर भी बच्चे पढ़ते थे – दीये की मंद रोशनी में, कभी-कभी तो बस चूल्हे की आग के पास बैठकर।
पन्ने हिलते थे, आँखें जलती थीं, लेकिन एक सपना जलता रहता था — “कुछ बनना है।”
आज सुबह-शाम बड़े शहरों के बच्चे complain करते हैं – “मूड नहीं है”, “नेट स्लो है”, “WiFi नहीं चल रहा”।
लेकिन जिस बच्चे ने कभी बिना बिजली के पढ़ाई की हो, उसे पता होता है कि मेहनत क्या होती है।
और शायद यही वजह है कि गाँव से निकले बहुत से लोग आज बड़े मुकाम तक पहुँचे हैं।
technology नहीं थी – लेकिन रिश्ते strong थे
आज आप किसी function में जाइए… सब एक ही room में होंगे लेकिन हर कोई अपने phone में busy रहेगा।
उस वक्त ऐसा कुछ नहीं था।
जब गाँव में बिजली नहीं थी, तब लोग एक-दूसरे के साथ बैठते थे, बातें करते थे, हँसते थे, झगड़ते थे और फिर मान जाते थे।
रिश्तों में warmth थी, elders का respect था, और बच्चों के लिए पूरा गाँव एक family की तरह था।
इसी बात को हमने पहले “गाँव की औरतों की मेहनत – अनकही कहानियाँ” में भी महसूस किया था, जहाँ औरतें सिर्फ घर नहीं, पूरा गाँव संभालती थीं – बिना किसी मशीन के, बिना किसी सुविधा के।
वो strength आज भी inspiraton देती है।
जब बिजली आई – तो सब कुछ बदलने लगा
फिर धीरे-धीरे गाँवों में बिजली आई। पहले-पहले एक ही bulb, फिर पंखा, फिर TV, और अब तो पूरा smart home system भी आ रहा है।
इससे ज़िंदगी आसान हुई, इसमें कोई doubt नहीं है:
- बच्चों की पढ़ाई आसान हुई
- खेती में electric motor आने लगी
- रात को भी काम possible हो गया
- औरतों का काम थोड़ा हल्का हुआ
- mobile, internet, new opportunities आईं
लेकिन…
क्या आपने कभी सोचा है कि इसी के साथ
👉 बातचीत कम हो गई
👉 साथ बैठना कम हो गया
👉 और सुकून कहीं खो सा गया?
मुझे लगता है progress जरूरी है, पर roots को भूल जाना सही नहीं है।
आज भी कुछ जगहें हैं जहाँ “गाँव में बिजली नहीं है”
2025 में भी भारत के कुछ remote इलाके ऐसे हैं जहाँ आज भी बिजली कभी-कभी ही आती है या बिल्कुल नहीं।
वहाँ के लोग आज भी उसी पुराने तरीके से ज़िंदगी चला रहे हैं — दीया, सोलर लैंप, लकड़ी का चूल्हा और आसमान के तारे।
और यकीन मानिए, जब आप रात में खुला आसमान देखकर सोते हो — तो वो peaceful feeling किसी AC वाले कमरे में नहीं मिलती।
शायद इसीलिए अब बहुत से लोग गाँव में “off-grid living”, “slow village life”, और “digital detox” के लिए जा रहे हैं।
असली खुशी क्या होती है – मुझे वो वहीं दिखी
मुझे आज भी याद है — एक शाम गाँव में जब बिजली नहीं थी, बादल छाए हुए थे, ठंडी हवा चल रही थी और पूरा परिवार बाहर बैठकर मूंगफली खा रहा था।
न कोई TV, न mobile, न notification, न stress…
बस लोग… और उनकी बातें…
उस दिन मुझे लगा कि असली खुशी यही है।
ना बड़ी गाड़ी में, ना महंगे फोन में — बल्कि अपने लोगों के साथ उन छोटे पलों में।
और यही message आज की generation को समझने की जरूरत है।
क्या हम उस सुकून को वापस ला सकते हैं?
पूरी तरह तो शायद नहीं… लेकिन कुछ हद तक, हाँ।
आप कभी try करके देखिए:
- एक दिन mobile बंद करके घरवालों के साथ बैठिए
- रात को balcony या छत पर समय बिताइए
- गाँव जाएं तो फालतू gadgets छोड़ दीजिए
- लोगों से बातें कीजिए, stories सुनिए
फिर आपको भी महसूस होगा कि
बिजली सिर्फ रोशनी देती है… लेकिन खुशी रिश्ते देते हैं।
Conclusion
आज हमारे पास सब कुछ है — बिजली, इंटरनेट, आराम, technology —
लेकिन वो सादगी, वो अपनापन, वो मिट्टी की खुशबू और वो बिना बिजली वाली रातों की warmth… वो अमूल्य थी।
“जब गाँव में बिजली नहीं थी – लेकिन खुशी थी”
ये सिर्फ एक लाइन नहीं है, ये एक पूरा एहसास है — जो आज भी दिल के किसी कोने में जलता है… एक छोटे से दीये की तरह।
और शायद…
वो दीया कभी बुझेगा नहीं।