मेरे गाँव की सर्दियों की सुबह – धूप, धुआं और बचपन की यादें

❄️ सुबह की वो ठंडी हवा, जो दिल तक उतर जाती है:

सुबह के पाँच बजे होंगे। बाहर सन्नाटा था, बस कभी-कभी कुत्तों के भौंकने की आवाज़ सुनाई दे रही थी।
दरवाजे से झाँका तो लगा जैसे पूरा गाँव धुंध की रजाई ओढ़े सोया हुआ है।
चारों ओर सफेद कुहासा, पेड़ों की टहनियाँ ओस से चमक रहीं थीं, और कहीं दूर कोई मोर की धीमी पुकार

ठंड इतनी थी कि हथेली से मुँह ढकने पर भी सांसें धुएँ जैसी दिखतीं।
लेकिन उस सर्दी में भी कुछ तो जादू था — एक सुकून, जो सिर्फ गाँव की सुबह में महसूस होता है।


🌤 जब सूरज ने धुंध को चीर कर झाँकना शुरू किया

धीरे-धीरे पूरब का आसमान हल्का गुलाबी हुआ, और उसके पीछे से सूरज की पहली किरण निकली।
वो किरण जब खेतों के ऊपर गिरी, तो ऐसा लगा मानो मिट्टी ने सोना पहन लिया हो।
गायें गोठ से बाहर आईं, उनके मुँह से निकली भाप सर्द हवा में घुल गई।

माँ ने तभी आवाज़ लगाई,

“चल उठ बेटा, धूप निकली है, पानी गर्म कर ले नहाने से पहले!”

मैं मुस्कुरा दिया — गाँव की सर्दी में माँ की ये आवाज़ किसी अलार्म से ज़्यादा असरदार होती है।


☕️ चूल्हे की आंच और चाय की खुशबू

घर के आँगन में लकड़ी का चूल्हा जल चुका था।
धुएँ की महक, चाय की भाप और गुड़ की मिठास — इन तीनों का मिलना ही गाँव की सर्द सुबह की पहचान है।

माँ ने मिट्टी के चूल्हे पर तांबे की केतली रखी, और चारों तरफ चायपत्ती की खुशबू फैल गई।
वो खुशबू इतनी प्यारी लगती है जैसे किसी पुराने गीत की धुन – जो सालों बाद भी दिल में उतर जाए।

चाय की पहली चुस्की लेते ही लगा जैसे ठंड पीछे हट गई और यादें पास आ गईं।


🌾 खेतों की तरफ – ओस, धूप और सन्नाटा

नाश्ते के बाद मैं खेतों की तरफ निकल पड़ा।
रास्ते के किनारे लगे पेड़ों से ओस की बूँदें टपक रही थीं।
हर कदम पर मिट्टी की खुशबू कुछ ज़्यादा गहरी लग रही थी।

खेतों में कुछ किसान पहले ही पहुँच गए थे — सिर पर मफलर, हाथ में हँसिया, और चेहरे पर वही सर्दी की मुस्कान।
उनकी बातें सुनकर लगा, यहाँ सर्दी ठिठुराती नहीं, जोड़ती है।


🪔 रसोई का कोना – जहाँ सर्दी भी मीठी लगती है

घर लौटकर देखा तो रसोई में माँ ने दलिया तैयार किया था — गुड़, दूध और सूखे मेवों के साथ।
चूल्हे के पास रखे ताम्बे के गिलास से उठती भाप और माँ की मुस्कुराहट…
वो पल ऐसा था जैसे पूरा घर गरमाहट से भर गया हो।

मैंने पूछा, “माँ, इतनी ठंड में सब बाहर कैसे निकलते हैं?”
माँ ने हँसते हुए कहा,

“ठंड नहीं बेटा, काम छोड़ने की आदत नहीं है हमें।”

उस जवाब में गाँव की सच्चाई थी — यहाँ मौसम बदलता है, पर मेहनत और अपनापन नहीं।


🧣 बुजुर्गों की बातें और ऊन के स्वेटर

आँगन में चार बुजुर्ग बैठे थे, अंगीठी के पास, ऊन की टोपी पहने।
किसी के हाथ में चाय थी, किसी के पास गरम मूंगफली।
वे बातें कर रहे थे कि पहले के ज़माने में सर्दी कितनी ज्यादा पड़ती थी – जब अंगीठी से दूर जाना मुश्किल होता था।

उनकी आँखों में चमक थी, जैसे वो हर सर्द सुबह में अपनी जवानी की झलक देख रहे हों।
और तभी मुझे लगा, गाँव की ये सुबह समय से ज़्यादा यादों की गहराई रखती है।


🐄 बच्चों की मस्ती और गायों की घंटियाँ

पास के गोठ से गायों की घंटियों की टन-टन आवाज़ गूँज रही थी।
बच्चे अपने हाथ में ऊन के दस्ताने और गालों पर लालिमा लिए खेतों की तरफ भाग रहे थे।
किसी ने बर्फ जैसी ओस उठाकर फेंकी, तो किसी ने मिट्टी से छोटी गाड़ी बना ली।

वो दृश्य ऐसा था कि दिल में एक बात आई —
गाँव की सर्द सुबहें बच्चों के लिए adventure होती हैं, और बड़ों के लिए nostalgia।


🌞 दोपहर की धूप – गाँव की सबसे प्यारी therapy

जब दोपहर में धूप निकली, तो पूरा गाँव आँगन में आ बैठा।
चटाई बिछाकर सबने ऊनी कपड़े सुखाने रखे, कोई बुनाई कर रहा था, कोई मूंगफली फोड़ रहा था।
धूप इतनी कोमल थी कि उसके नीचे बैठना किसी meditation से कम नहीं लगा।

सर्दियों की धूप सिर्फ गर्म नहीं करती, ज़िंदगी को धीरे-धीरे जीना सिखाती है।


🌇 शाम की ठंड और मंदिर की घंटियाँ

जैसे-जैसे सूरज ढलने लगा, हवा फिर से सर्द हो गई।
घर-घर से धुआँ उठने लगा, बच्चे गोठ से लौट आए, और कहीं दूर मंदिर की घंटी बजने लगी।
उस आवाज़ के साथ हवा में घुली मिट्टी और धुएँ की खुशबू ने जैसे दिन का समापन कर दिया।

वो एहसास ऐसा था जैसे पूरा गाँव एक साथ साँस ले रहा हो — शांत, सुकूनभरा और अपना।


❤️ आख़िरी सोच – सुकून की असली परिभाषा

गाँव की सर्दियों की सुबह सिर्फ मौसम नहीं, एक भावना है।
यह वो एहसास है जहाँ धूप सिर्फ शरीर नहीं, रूह को भी गरमाती है।
जहाँ चाय की चुस्की में कहानी छिपी है, और हर धुएँ के गुबार में एक याद।

और हाँ — अगर आपने मेरा पिछला लेख “गाँव के त्योहार की रौनक” पढ़ा है, तो आप समझ सकते हैं कि गाँव का हर मौसम अपनी अलग कहानी कहता है।
वो त्योहार लोगों को जोड़ते हैं, और ये सर्द सुबहें रिश्तों को और गहराई से महसूस करवाती हैं।


🌿 Conclusion

शहर की जिंदगी में जहाँ हम सब कुछ जल्दी में करते हैं,
वहीं गाँव की सर्द सुबह हमें सिखाती है —

धीरे चलो, महसूस करो, और उन चीज़ों को जियो जो सच में मायने रखती हैं।

क्योंकि सर्दियों की वो सुबह,
जहाँ माँ की पुकार, चूल्हे का धुआँ, और मिट्टी की खुशबू साथ मिलती है —
वो ही तो ज़िंदगी का सबसे खूबसूरत संगीत है।

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