खेतों में बिताया एक दिन – अनोखा अनुभव

कभी-कभी ज़िंदगी में कुछ पल ऐसे आते हैं जो हमें अंदर तक हिला देते हैं — अच्छे तरीके से। पिछले महीने जब मैं अपने गाँव गया, तो सोचा कि इस बार मोबाइल, लैपटॉप और शहर की भागदौड़ सबको कुछ दिन के लिए छोड़ दूँ।
बस मिट्टी की खुशबू में सांस लेना चाहता था, वही खेतों की हवा में जो बचपन में महसूस की थी।


🚜 खेत का पहला नज़ारा

सुबह लगभग साढ़े छह बजे जब मैं खेत की ओर चला, तो रास्ते में चारों तरफ हल्की धुंध थी। दूर से किसी के बोलने की आवाज़, कहीं मुर्गे की बाँग, और हवा में ठंडक का हल्का सा एहसास।
जैसे-जैसे मैं खेतों के करीब पहुँचा, हवा में मिट्टी की गंध और तेज़ हो गई।

खेत में पहुँचकर पहली चीज़ जो दिखी — दो बैल, जिनके साथ किसान हल चला रहा था। उनके माथे पर पसीना था, लेकिन चेहरे पर मुस्कान थी।

मैं पास जाकर बोला,
“भैया, रोज़ इतनी सुबह आ जाते हो?”
वो हँसते हुए बोले,
“किसान के लिए सूरज उगना मतलब काम शुरू होना, और सूरज ढलना मतलब आराम।”

उस पल मुझे एहसास हुआ — ये लोग सूरज की चाल से जीते हैं, घड़ी से नहीं।


🌿 मिट्टी से जुड़ने का एहसास

मैंने झुककर मिट्टी को हाथ में लिया। वो गीली थी, ठंडी थी, और उसमें एक ऐसी खुशबू थी जो किसी perfume से नहीं मिल सकती।
शायद इसलिए कहते हैं — “मिट्टी की खुशबू में घर की पहचान छिपी होती है।”

पास में कुछ महिलाएँ धान की रोपाई कर रही थीं। उनके कपड़ों पर मिट्टी लगी थी, बालों में पसीना था, पर चेहरे पर एक अनोखी शांति थी।
वो हँसते हुए एक-दूसरे से बातें कर रही थीं, जैसे मेहनत भी किसी उत्सव का हिस्सा हो।

मैंने उनसे पूछा,
“थकान नहीं लगती?”
एक महिला ने जवाब दिया,
“थकान तो हर काम में है बेटा, पर ये थकान सुकून देती है।”

उस जवाब में इतनी गहराई थी कि मैं कुछ पल बस चुप रह गया।


खेत का दोपहर का खाना

दोपहर की धूप थोड़ी तेज़ हो चुकी थी। सभी किसान पेड़ की छाया में बैठ गए। किसी के पास रोटी थी, किसी के पास प्याज, तो किसी के पास घर की बनी चटनी।
मैंने भी वहीं बैठकर खाना खाया।

ना कोई fancy table, ना plate – बस मिट्टी की खुशबू, पेड़ की ठंडी हवा और सच्चे लोग।
पहली बार महसूस हुआ कि खाना इतना भी सुकूनभरा हो सकता है।

वो रोटी और प्याज शायद किसी restaurant के dish से लाख गुना ज़्यादा स्वादिष्ट थी। क्योंकि वहाँ स्वाद सिर्फ खाने में नहीं था, बल्कि साथ में बाँटने में था।


🐂 मेहनत का असली चेहरा

शाम के करीब खेतों में हलचल थोड़ी कम हो गई थी। बैल धीरे-धीरे चलते हुए थक चुके थे।
मैंने उस किसान से पूछा,
“इतनी मेहनत के बाद भी कभी मन नहीं करता छोड़ देने का?”

वो मुस्कुरा कर बोला,
“अगर खेत छोड़ दूँ, तो अगली पीढ़ी क्या बोएगी? हर किसान के खून में मिट्टी की गंध होती है।”

उसकी बात सुनकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए।
हम शहरवाले जहाँ luxury ढूंढते हैं, वहाँ ये लोग ज़िंदगी को मिट्टी के साथ जीते हैं।


🌇 खेतों की शाम – सुनहरी शांति

शाम को जब सूरज ढल रहा था, पूरा खेत सुनहरा हो गया।
बच्चे खेत के किनारे खेल रहे थे, और हवा में अब ठंडक घुल चुकी थी।

मैं मिट्टी पर बैठा रहा, आसमान को देखता रहा।
एक पल के लिए लगा जैसे समय रुक गया हो।
ना कोई notification, ना कोई traffic horn — बस हवा की सरसराहट और झींगुरों की आवाज़।

सच कहूँ तो, उस शाम ने मुझे शहर की सारी चमक भुला दी।


🌾 खेतों से मिली सीख

उस दिन मुझे समझ आया कि खेती सिर्फ पेशा नहीं, बल्कि ज़िंदगी जीने की कला है।
हर बीज में मेहनत का पसीना, हर पौधे में उम्मीद, और हर फसल में दुआएँ होती हैं।

हम जैसे लोग जो हर चीज़ को “fast” चाहते हैं, उन्हें एक दिन खेत में ज़रूर बिताना चाहिए।
वहाँ जाकर पता चलता है कि धीमी ज़िंदगी में ही असली खुशी छिपी होती है।


🌿 आख़िरी पल और एक वादा

शाम को जब मैं वापस लौट रहा था, मिट्टी अब भी हाथों में चिपकी थी।
मैंने पीछे मुड़कर खेत को देखा — सूरज की आखिरी किरणें धान के पौधों पर पड़ रही थीं, जैसे किसी ने सोने की परत चढ़ा दी हो।

मैंने मन ही मन सोचा —
“अगली बार जब शहर की ज़िंदगी से थक जाऊँगा, तो फिर यहीं लौट आऊँगा।”


💬 एक छोटी सोच

हम सबको अपनी जड़ों से जुड़े रहना चाहिए।
शहर चाहे जितनी ऊँची इमारतें दे दे, सुकून हमेशा मिट्टी में ही मिलेगा।
और हाँ, अगर आपको गाँव की यह कहानी पसंद आई हो,
तो “गाँव के त्योहार की रौनक” वाली पिछली कहानी ज़रूर पढ़िए —
वहीं से तो यह सफर शुरू हुआ था। 🌾

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