गांव में शादी की रस्में – मज़ा और परंपरा

सच कहूं तो… जब मैं शहर से गांव पहुंचा था, तब मुझे सिर्फ एक चीज़ पता थी – “आज शादी है।”

पर मुझे ये बिल्कुल नहीं पता था कि जो मैं देखने वाला हूं, वो सिर्फ शादी नहीं होगी —
वो एक small festival होगा, जिसमें हर इंसान की सांस शामिल होगी।

गांव में शादी किसी event manager के भरोसे नहीं होती।
वो खुद गांव के लोग मिलकर create करते हैं – दिल से, कंधे से, मेहनत से।

और शायद इसी वजह से गांव की शादी इतनी ज्यादा real, raw और emotional लगती है।

(मुझे ठीक वैसे ही सुकून महसूस हुआ जैसा पिछले लेख में बताया था, जब मैंने शहर की भागदौड़ छोड़कर गांव की खुली हवा और सादे जीवन का अनुभव किया था – जैसे ज़िंदगी फिर से slow motion में चल रही हो।)

शादी से कई दिन पहले ही शुरू हो जाती है हलचल

गांव में शादी की announcement कोई एक दिन पहले नहीं होती।
शादी से कम से कम 5–7 दिन पहले ही एक अलग सी हलचल महसूस होने लगती है।

घर की दीवारें लीप दी जाती हैं – गोबर और मिट्टी से
आंगन झाड़ा जाता है
चूल्हे की मरम्मत होती है
और हर घर यह पूछने लगता है:

“भात में क्या बनेगा?”
“बारात कितनी दूर से आएगी?”
“ढोल कौन बजाएगा?”

यहां शादी सिर्फ घर की नहीं होती —
पूरे गांव की होती है।

Traditional village wedding procession with drums and dancing people
Traditional village wedding procession with drums and dancing people

न्योता देने का तरीका: दिल से, फोन से नहीं

आजकल आपने देखा होगा –
शहरों में invitation एक WhatsApp message, एक PDF, एक fancy animated card बनकर आ जाता है।

पर गांव में?
यहां आज भी न्योता पैदल जाकर दिया जाता है।

एक हाथ में पान, सुपारी और थोड़ा सा मीठा
और साथ में एक वाक्य:

“फलानी तारीख को लड़की की शादी है, ज़रूर आइएगा”

कोई design नहीं, कोई font नहीं —
फिर भी उस न्योते की value 100 digital cards से ज्यादा होती है।

और मज़े की बात ये है कि, जिसे बुलाया जाता है…
वो सिर्फ guest नहीं बनता —
वो शादी का हिस्सा बन जाता है।

मेहंदी और हल्दी: असली रिश्तों का रंग

शादी से एक दिन पहले दुल्हन के घर में
एक ख़ास महक फैल जाती है — हल्दी, सरसों का तेल और मेहंदी की खुशबू।

औरतें गोल घेरा बनाकर बैठ जाती हैं।
कोई गा रही होती है लोक गीत
कोई दुल्हन को चिढ़ा रही होती है
कोई पुराने शादी के किस्से सुना रही होती है

दुल्हन की हँसी में थोड़ा डर, थोड़ा उत्साह, और बहुत सारा प्यार होता है।

हल्दी की उस रस्म में जब दादी अपने कांपते हाथों से हल्दी लगाती है —
तो वो सिर्फ रंग नहीं लगाती…

वो बचपन की एक आखिरी लकीर खींच देती है।

Women applying haldi and mehndi to the bride in an Indian village
Women applying haldi and mehndi to the bride in an Indian village

ढोल-दमाऊ और बारात: जब धरती भी थिरकती है

गांव की बारात में कोई luxury car नहीं होती।
यहां राजा जैसी feeling लोगों की मुस्कान से आती है।

कहीं ढोल बजता है
कहीं दमाऊ की आवाज़ गूंजती है
कही बच्चे नाचते हैं
और बुज़ुर्ग बस देखकर खुश हो जाते हैं

बारात चाहे पैदल हो, या ट्रैक्टर पर —
उसका जोश किसी procession से कम नहीं होता।

और honestly बताऊं?
मैंने शहरों की कई expensive weddings देखी हैं…
पर जो मज़ा, जो अपनापन, जो wild happiness
मुझे गांव की बारात में दिखा —
वो कहीं और नहीं मिला।

(मुझे बारात का वो नज़ारा याद आया, जैसा मैंने पिछले लेख में पहाड़ों की यात्रा के दौरान महसूस किया था — जब इंसान और प्रकृति एक rhythm में सांस ले रहे थे।)

मंडप: जहां इंसान और प्रकृति मिलते हैं

गांव में मंडप किसी decorator से नहीं बनता।
वो बनता है – बांस, लकड़ी, आम के पत्ते, और मिट्टी से।

सिंपल होता है
पर पवित्र होता है

जब पंडित मंत्र पढ़ता है
और दुल्हन-दुल्हा सात फेरे लेते हैं
तो ऐसा लगता है जैसे हवा भी रुककर उस पल को देख रही हो।

वहां कोई camera का दबाव नहीं होता
कोई ‘perfect pose’ नहीं होती

बस – एक सच्चा पल होता है।

गांव का खाना: स्वाद जो जिंदगी भर याद रहे

गांव की शादी का खाना किसी hotel से नहीं बनता।
वो बड़ी-बड़ी हांडियों में, लकड़ी के चूल्हे पर बनता है।

पूरी, सब्जी, दाल, खीर, चटनी
और हर चीज़ में हाथ का स्वाद

यहां खाना सिर्फ पेट के लिए नहीं बनता —
वो रिश्ते मजबूत करने के लिए होता है।

जब लोग पंक्ति में बैठकर एक साथ खाते हैं —
तो दिखता है कि असली equality क्या होती है।

विदाई: दर्द और आशीर्वाद का संगम

सबसे चुप पल…
सबसे भारी पल…

जब दुल्हन अपने आंगन को आखिरी बार देखती है।

मां की आंखें नम
भाई का चेहरा कठोर
और पापा की आँखों में वो शब्द
जो कभी बोले ही नहीं जाते

वो पल सिर्फ एक लड़की की विदाई नहीं होती…
वो एक ज़िंदगी के chapter का अंत होता है।

और सच मानिए –
उस विदाई में जितनी ताक़त होती है
उतनी किसी speech में भी नहीं होती।

क्यों गांव की शादी आज भी सबसे खास है?

क्योंकि वहां —

• दिखावा नहीं होता
• दिखने के लिए नहीं किया जाता
• सब कुछ दिल से होता है
• हर इंसान जुड़ा होता है
• और हर रिश्ता सच्चा होता है

शहरों में जहां शादी एक project बन गई है,
वहीं गांव में शादी आज भी
एक पवित्र बंधन और सामाजिक उत्सव है।

(और यही बात मुझे पहले लिखे अपने उस लेख से जोड़ती है — जहां मैंने बताया था कि गांव की सादगी किस तरह इंसान की ज़िंदगी को एक नया नजरिया देती है।)

अंतिम दिल की बात

अगर आपको कभी life में असली भारत देखना है
तो किसी mall में नहीं,
किसी resort में नहीं…

एक बार गांव की शादी में ज़रूर जाना।

वहाँ आपको नाच भी मिलेगा
रोना भी मिलेगा
प्यार भी मिलेगा
और वो चीज़ मिलेगी जो शहर छीन लेता है —

“अपनापन”

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