जब यात्रा बनी Fear की दवाई

सोचिए — एक सुबह जब आप अपना बैग बांधते हैं, boarding pass हाथ में रहती है, और आपकी धड़कनें थम-सी जाती हैं। लेकिन अगले ही पल वो डर गायब हो जाता है — replaced by excitement और थोड़ी सी रूह की आज़ादी। मैंने खुद ये महसूस किया है, और शायद आप भी महसूस कर सकते हैं।
कुछ साल पहले, मैं भी travel से डरती थी। “अगर plane delayed हो गया?”, “अगर language समझ न आए?” या “अगर सब गलत हो गया?” — डर हमेशा मेरे दिमाग में चुपचाप बैठा रहता था। लेकिन फिर मैंने decide किया — “चलो, चलते हैं।” और उस decision ने मेरे डर को चुनौती दी।

आज, जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूँ, तो मुझे समझ आता है कि travel ने fear को हराया — जिस तरह किसी पुराने दर्द को छोड़कर नई शुरुआत हो जाती है। और ये trend अब सिर्फ मेरे जैसा अकेला “adventurer” नहीं बल्कि हर रोज़ के लोगों में दिखने लगा है।

क्यों अब travel सिर्फ destination नहीं रहा

2020-22 के lockdowns के बाद, भारत में एक बदलाव आया — लोग realize करने लगे कि जिंदगी पलों की है। Routine, city-life, deadlines — सब कुछ अचानक एक monotonous loop लगने लगा था। उसी वक्त कईयों के लिए travel महज़ छुट्टी नहीं, एक “reset button” बन गया।

दिल्ली, मुंबई, पटना — जिस शहर में भी हो, युवाओं में wanderlust फिर से जागा। चाहत थी थोड़ा खुलने की, खुल कर देख पाने की। जिससे internal stress, anxiety, और छोटे-छोटे डर कम होने लगे। मैंने देखा है कि जिस दोस्त के घर lockdown के बाद बालकनी तक नहीं गया था, वो अब hills में trekking की तस्वीरें भेज रहा है। ये बदलाव सिर्फ शौक नहीं, मानसिक ज़रूरत बन चुका है।

और इस बदलाव का सबसे बड़ा असर देखा जा रहा है — travel ने fear को हराया उन अंदरूनी डर को, जो हमें रोज़मर्रा की ज़िंदगी में खालिस याद बनकर घेर लेते थे।

मेरी पहली journey — डर की हां से जिंदगी की हां तक

मेरी पहली solo trip उस summer में थी — एक छोटे hill-station के लिए। शुरुआती excitement के साथ, डर भी था। मुझे चिंता थी कि किधर जाऊँगी, क्या सही route मिलेगा, या कहीं अकेली फँस जाऊँगी। लेकिन जैसे ही मैं गाड़ी से उतरकर उस हरी-भरी घाटी की ओर देखी, डर धीरे-धीरे हवा में उड़ने लगा।

पहली रात जब पहाड़ों के बीच चांदनी में हवा थी, ऐसा लगा— “ये जिंदगी है।” मैंने महसूस किया कि डर सिर्फ हमारी कल्पना में बड़ा होता है। वास्तविकता में हर पल नए अनुभव, नए चेहरे, नए रंग लेकर आती है। और उस दिन मुझे यकीन हुआ — travel ने fear को हराया, और मुझे मेरी हिम्मत खुद दी।

अब जब कोई पूछता है कि पहली trip कैसी रही — तो मेरी आवाज़ हिचकिचाती नहीं, बल्कि फूल-सी खिली होती है। वो trip मेरे लिए सिर्फ जगह नहीं, खुद की एक नई मंज़िल थी।

Close-up of a backpack, passport & boarding pass on a table
Close-up of a backpack, passport & boarding pass on a table

भारत में travel का नया चलन क्यों?

पिछले 2–3 साल में, domestic tourism में जबरदस्त surge देखने को मिला है। लोग महंगे overseas trips के बजाय देश की खूबसूरती rediscover कर रहे हैं — hills, beaches, heritage sites। और इस journey में, सबसे महत्वपूर्ण बदलाव है mental shift — जहाँ travel अब सिर्फ “देखने” के लिए नहीं, “feel करने” और “grow” करने के लिए है।

कई युवाओं ने कहा — “पहले travel luxury था, अब ज़रूरत है।” Lockdown-stress, monotony, city-life का hustle — सब कुछ travel की एक खुराक मांग रहा है।

किसी ने मुझे बताया कि उसके लिए first trip एक therapy जैसा था — fresh हवा, सुन्दर landscape, नया लोग, थोड़ी adventure और ज़िंदगी की सादगी — जिसने उसके अंदर डर नहीं, भरोसा जगाया।

Young Indian travelers laughing at a hill-station
Young Indian travelers laughing at a hill-station

travel ने fear को हराया — ये कैसे संभव हुआ?

  1. नए अनुभवों से डर मिटा: जब आप पहली बार किसी नए शहर में जाते हैं, language, food, route सब नया होता है। बचपन की वो डर-feelings धीरे-धीरे fade हो जाती हैं। पहली bus ride, पहली train journey, पहली local food — ये सब डर से ज़्यादा excitement देते हैं।
  2. मानसिक सजगता और आत्मविश्वास बढ़ा: अकेले बाहर निकलना, navigation खुद करना, unexpected situations से निपटना — इन सबने आपके decision-making को तगड़ा किया। इससे पता चलता है कि आप अपनी ज़िंदगी के जिम्मेदार हैं।
  3. ज़िंदगी का नजरिया बदल गया: city-stress, deadline pressure, social expectations — travel ने याद दिलाया कि ज़िंदगी सिर्फ काम नहीं, अनुभव है। नदी की ठंडी हवा, पहाड़ों की चुप्पी, किसी रेलवे प्लेटफार्म पर रात — ये सब remind करते हैं कि ज़िंदगी में छोटे पल भी कितने बड़े होते हैं।

और मुझे लगता है कि कई लोगों के लिए, यही change सबसे बड़ा है — travel सिर्फ holiday नहीं, self-discovery है।

पहले के मुकाबले अब – क्यों ज़रूर हो रही है ये shift

पहले लोग travel को luxury मानते थे — क्लासी होटल, महंगी flights, long vacations। लेकिन अब बदलाव है। लोग weekend getaways, short trips, budget-friendly stays पसंद कर रहे हैं। Social media, affordable transport, remote work (work from anywhere) — इन सबने travel barrier कम कर दिए हैं।

और कहना चाहूँगी — मैं जिस fear को कभी अपनी पहचान मानती थी, वो अब मेरी weakness नहीं रही। वो पहले की तरह डर नहीं रही। travel ने fear को हराया — और मेरे लिए जीवन का एक हिस्सा बन गया।

जब suitcase बोले “चलो” — आपकी अगली शुरुआत

अगर आप कभी सोच रहे हैं — “क्या मैं अकेले यात्रा कर पाऊँगी?” या “क्या मेरे लिए travel safe है?” — तो मैं कहूँगी: हाँ, ज़रूर। थोडा coragem चाहिए, थोड़ा planning, और willingness to feel new।

मेरा मानना है कि हर इंसान deserves करता है वो feeling — खुली हवा, नई आवाज़ें, अलग culture, खाली सफर। और शायद अब आपको ही वो पल मिले — जब आप बैग बांधें, breathe deep करें और कहें, “चलो निकलते हैं।”

जैसे हमने पहले “यात्रा के नए रंग” में बताया था कि छोटी-छोटी journeys भी बड़ी राहत दे सकती हैं — वैसे ही मैं कहूँगी कि अब वक्त है कि आप अपनी कहानी खुद लिखें।

travel ने fear को हराया — और आपकी अगली यात्रा, हो सकती है आपकी जिंदगी की सबसे खूबसूरत शुरुआत।

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